
“गंगा घाट पर ‘मृत्यु का खेल’—जब चिता पर शव नहीं, सच जलता मिला”
“कभी सुना है? किसी ने अपने जिन्दा होने को छुपाने के लिए मौत का नकली नाटक कर दिया—वो भी गंगा किनारे चिता पर…!”
दिल्ली से आए दो कपड़ा व्यापारी ब्रजघाट पहुंचे। हाथ में लकड़ी, कफ़न और बीच में लिपटी एक “लाश”—जैसे किसी अपनों का संस्कार करने आए हों। लेकिन जैसे ही चिता पर रखे शरीर से चादर हटाई गई… लोग सन्न रह गए।
वो इंसान नहीं था—एक पुतला था।

गंगा किनारे अचानक हड़कंप मच गया। सवाल उठे—कौन है ये लोग? चिता पर पुतला क्यों?
पुलिस आई, पूछताछ हुई, और सच सामने आया—इंश्योरेंस के 50 लाख के लिए “मौत का नाटक” तैयार किया गया था।
नकली शव, नकली दाह-संस्कार, नकली कागज़… और असली लालच।
लेकिन अंतिम संस्कार की आग जलने से पहले ही सच पकड़ा गया। दोनों आरोपी मौके से गिरफ्तार कर लिए गए।ये घटना सिर्फ एक फ्रॉड नहीं—ये उस समाज की तस्वीर है जहाँ कुछ लोग अपने लोभ के लिए गंगा और मृत्यु-संस्कार जैसी पवित्र परंपराओं को भी ठगने का औजार बना लेते हैं।
कहानी यही खत्म नहीं होती।
इस घटना ने साबित कर दिया कि आजकल “मौत” भी बिक सकती है—बस पकड़े जाने का डर बाकी है।