संविधान दिवस 2025: पेरिस में यूनेस्को मुख्यालय पर बाबा साहेब की प्रतिमा अनावरण — भारत के लिए गौरव-क्षण

जब दुनिया का एक प्रमुख मंच UNESCO पेरिस में, हमारे संविधान के शिल्पी Dr. B. R. Ambedkar की प्रतिमा लगाए, तो न केवल भारत, बल्कि हर उस मानवीय आदर्श का साक्षी बना — समानता, न्याय और गरिमा का।

26 नवंबर 2025 — Constitution Day — इस दिन, भारत सिर्फ अपना संविधान नहीं मना रहा था, बल्कि उसके निर्माता को विश्व पटल पर सम्मान दे रहा था; एक ऐसा सम्मान जो आज तक किसी और भारतीय नेता के लिए पेरिस में नहीं हुआ था।

  • इस संविधान दिवस के अवसर पर, पेरिस स्थित यूनेस्को मुख्यालय में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की कांस्य प्रतिमा (bust) का अनावरण हुआ।
  • इस प्रतिमा का अनावरण भारत के स्थायी प्रतिनिधि और यूनेस्को में देश के राजदूत Vishal V. Sharma द्वारा किया गया। समारोह में यूनेस्को के महानिदेशक सहित अनेक राजनयिक मौजूद थे।
  • भारत के प्रधानमंत्री Narendra Modi ने इसे “गौरव का क्षण” कहा और कहा कि यह “संविधान के निर्माता को एक fitting tribute (उचित श्रद्धांजलि)” है

इस कदम का महत्व

  • पहले किसी भारतीय नेता (बाबासाहेब के पहले) को पेरिस स्थित यूनेस्को मुख्यालय में प्रतिमा का यह सम्मान नहीं मिला था। इसलिए यह एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक उपलब्धि है।
  • यह केवल प्रतीक नहीं — यह संदेश है: हिन्दुस्तान का संविधान, उसकी न्याय-भावना और उसकी सार्वभौमिक मान्यताओं का समर्थन विश्व स्तर पर हो रहा है।
  • डॉ. आंबेडकर के विचार — सामाजिक न्याय, समानता, अवसरों की बराबरी — अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व समुदाय के सामने भी प्रतिष्ठित हुए हैं।

भावी असर और प्रेरणा

  • यह कदम युवाओं, शिक्षितों, समाज के हर वर्ग को याद दिलाता है कि संविधान सिर्फ कागज़ी दस्तावेज नहीं है, बल्कि मानवाधिकार, समानता, सम्मान और न्याय की नींव है।
  • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस तरह का प्रतिनिधित्व, भारत की भूमिका, हमारे संस्थागत मूल्यों और सामाजिक आदर्शों को विश्व पटल पर पहचान दिलाता है।
  • आने वाले समय में — चाहे सामाजिक न्याय हो, मानवाधिकार की रक्षा हो, या समानता की लड़ाई हो — यह प्रतिमा और इस अनावरण समारोह का मतलब एक प्रेरणा स्रोत बनेगा।

निष्कर्ष

पेरिस — एक वैश्विक संस्था — में बाबा साहेब की प्रतिमा का अनावरण, सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश है: कि हमारे संविधान के निर्माता और उनके आदर्श अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे विश्व में मानवता, सम्मान और समानता के प्रतीक बन चुके हैं। यह भारत के लिए गर्व का दिन है, और हर उस व्यक्ति के लिए — जिसने संविधान, न्याय और समानता के लिए पूरी जिंदगी समर्पित की — यह श्रद्धांजलि है।

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