लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “वंदे मातरम् सिर्फ गाने के लिए नहीं, निभाने के लिए भी होता है।”
उनके इस बयान ने सदन में मौजूद सांसदों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया और राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया।
क्या कहा अखिलेश यादव ने?
अखिलेश यादव ने अपने भाषण में कहा कि:
- वंदे मातरम् की भावना सिर्फ आवाज़ में नहीं, कर्म में झलकनी चाहिए।
- आज वे लोग इस गीत पर सबसे अधिक राजनीति कर रहे हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा तक नहीं लिया।
- ऐसे लोग “वोकल राष्ट्रवाद” दिखाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर राष्ट्रहित के असली मूल्यों को नहीं समझते।
- उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ किसी पार्टी या विचारधारा का निजी नारा नहीं, बल्कि देश की एकता का प्रतीक है।
फर्जी राष्ट्रवाद पर टिप्पणी
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष इस गीत के नाम पर “दिखावा और फर्जी राष्ट्रवाद” फैला रहा है।
उन्होंने कहा:
“अगर सिर्फ गाना ही काफी होता, तो आज़ादी की लड़ाई, बलिदान और संघर्ष की क्या ज़रूरत थी?”
उन्होंने स्पष्ट किया कि देशगान की गरिमा को राजनीति का औजार बनाना गलत है।
सिस्टम और सरकार पर तंज
चर्चा के दौरान अखिलेश ने इंडिगो फ्लाइट विवाद का जिक्र करते हुए सरकार पर तंज किया:
- “इंडिगो के विमान उड़ नहीं रहे या उड़ने नहीं दिए जा रहे?”
- उन्होंने कहा कि व्यवस्थाओं में सुधार करना भी राष्ट्रहित का हिस्सा है, सिर्फ नारे लगाने से कुछ नहीं होगा।
विपक्ष और सदन की प्रतिक्रिया
उनके बयान पर सत्ता पक्ष की ओर से विरोध दर्ज किया गया, जबकि विपक्षी दलों ने अखिलेश के तर्कों का समर्थन किया।
हालांकि, पूरे भाषण में अखिलेश यादव ने यह दोहराया कि देशभक्ति का मतलब सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि जनता के लिए किए गए कार्य होते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है यह बयान?
‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा के दौरान उनका भाषण ऐसे समय आया है जब:
- राष्ट्रवाद को लेकर राजनीतिक बहस अपने चरम पर है
- विपक्ष सरकार पर प्रतीकवाद की राजनीति का आरोप लगाता रहा है
- संसद में संसद सत्र के बीच लगातार तीखी बहसें हो रही हैं
अखिलेश का यह भाषण विपक्ष की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें सरकार को उसके कार्यों, नीतियों और प्रशासनिक जिम्मेदारियों पर कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।
निष्कर्ष
अखिलेश यादव का संदेश साफ है —
देशभक्ति शब्दों से नहीं, काम से साबित होती है।
उनकी यह टिप्पणी एक बार फिर संसद में राष्ट्रवाद बनाम वास्तविक विकास की बहस को गर्म कर गई है।