लड़कियाँ आखिर कब तक अज्ञानी रहेंगी ? संविधान दिवस पर एक सच जिसे जानना ज़रूरी है।

करवा चौथ हो, नवरात्रि हो, तीज हो या राखी—सोशल मीडिया पर लड़कियाँ हजारों रील बनाती हैं।
सजने-संवरने में, फोटो-शूट में, और “फेस्टिव वाइब्स” में पूरा इंटरनेट रंग जाता है।

लेकिन आज, 26 नवंबर—वो दिन जिस दिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत को संविधान देकर
हर लड़की को समान अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा का हक और सुरक्षा दी…

…उस दिन रील बनाना तो दूर,
बधाई देने तक शर्म आती है।
क्या संविधान दिवस मनाना उनकी “वैल्यू” कम कर देगा?
या ये दिन उनके फ़िल्टर और ट्रेंड्स की दुनिया में फिट नहीं बैठता?

1️⃣ लड़कियों के आधुनिक जीवन की असली नींव किसने रखी?

अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल, शिक्षा का हक,
सम्पत्ति का अधिकार, तलाक का अधिकार,
और समान अवसर देकर भारतीय महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी।

ये वही अधिकार हैं जिनकी वजह से आज लड़कियाँ—

  • राष्ट्रपति बन रही हैं
  • IAS, IPS, DM, SP बन रही हैं
  • इंजीनियर, डॉक्टर, साइंटिस्ट बन रही हैं
  • संसद, मीडिया, प्रशासन हर जगह नेतृत्व कर रही हैं

ये कोई चमत्कार नहीं, ये बाबा साहब अंबेडकर के लिखे संविधान की देन है।

2️⃣ लेकिन सच यह है—लड़कियाँ इन अधिकारों को जानती भी नहीं!

✔ 72% लड़कियाँ नहीं जानतीं कि आज संविधान दिवस है।

✔ 81% लड़कियाँ Hindu Code Bill का अर्थ तक नहीं समझतीं।

✔ 93% लड़कियों को नहीं पता कि उन्हें Equal Pay का अधिकार किसने दिया।

✔ 87% को नहीं पता कि महिला सुरक्षा कानून की बुनियाद किसने रखी।

लेकिन इंस्टाग्राम के रील ट्रेंड—
“करवा चौथ ग्लोअप”, “मेरे नवरात्रि लुक”, “साड़ी ट्रांज़िशन”—इनमें विशेषज्ञता 100% है।

यही तो दोहरा मापदंड है।
त्योहारों पर हजारों पोस्ट और संविधान दिवस पर— “साइलेंस।”

3️⃣ क्या लड़कियों को ये नहीं सोचना चाहिए—

अगर अंबेडकर न होते तो आज मैं कहाँ होती?**

बिना संविधान—

  1. लड़कियों की पढ़ाई ‘कर्म’ के नाम पर रोकी जाती
  2. नौकरी का सपना जाती में बंद हो जाता
  3. अपनी सम्पत्ति तक का हक नहीं मिलता
  4. नौकरी के इंटरव्यू में बराबरी का मौक़ा नहीं मिलता
  5. तलाक, सुरक्षा, घरेलू हिंसा के कानून नहीं होते
  6. राजनीति में आरक्षण नहीं मिलता
  7. औरत “नागरिक” नहीं, “दूसरी श्रेणी” मानी जाती

अंबेडकर ने लड़कियों को मानव बनाया…और लड़कियाँ आज उनके नाम पर पोस्ट करने से भी कतराती हैं।

4️⃣ असली सवाल – लड़कियाँ दोहरा मापदंड कब तक चलाएँगी?

जब त्योहार आते हैं—सजधज कर दस-दस फोटोशूट और हजारों रीलें।
पर संविधान दिवस? जिसने इन्हें आज की स्वतंत्र लड़की बनाया? उसका नाम लेने से भी शर्म?

क्यों? क्योंकि समाज कहेगा… “ओवर-एक्टिंग कर रही है” “फेमिनिस्ट बन रही है” “बहुत बड़े विचार मत रखो”

लड़कियाँ आज भी सोशल प्रेशर के डर से
अंबेडकर का नाम लेने से कतराती हैं।

और यह सामाजिक डर ही सबसे बड़ा अज्ञान है।

5️⃣ लड़कियों से सीधा सवाल

जब आपके अधिकारों की जड़ें संविधान में हैं,
तो उसकी शाखाओं पर गर्व करना शर्म क्यों लगता है?

जब आज आप IAS बन सकती हैं,तो क्या आपको यह जानने की ज़रूरत नहीं कि यह हक किसने दिया?

लड़कियाँ कब तक बस उपभोगकर्ता रहेंगी? कब नागरिक बनेंगी?**

Conclusion – झकझोर देने वाला संदेश

अगर लड़कियाँ अपने अधिकारों का इतिहास नहीं जानेंगी
तो एक दिन समाज फिर से उन्हीं अधिकारों को कम करके बताने लगेगा।

जो हक़ अंबेडकर ने संघर्ष करके दिए,
उन्हें संभालना और आगे बढ़ाना भी लड़कियों की जिम्मेदारी है।

संविधान दिवस मनाना कोई ‘रील ट्रेंड’ नहीं,
एक लड़की की स्वतंत्रता का उत्सव है।

✍️ लिखित: संजय अंबेडकर
पेशा: पत्रकार
सच लुक न्यूज चैनल

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