समाज में दो हिस्से तो है …
एक के लिए जी हूजूरी
एक को पैर की जूती समझना
यह सब तो आम बात है ।
सोचने से पहले काम हो जाए,
बोलने से पहले पानी मिल जाए
और एक तरफ वो
जिसके लिए काम करें उसके लिए मिलता है गटर का पानी,
ये सब कुछ तो हालात तय करते हैं मगर चाहे तो सरकार भी तय कर सकती है ।
सच में दो भारत तो है ?
एक के लिए साफ सफाई रखने वाला, एक के लिए उसके लिए काम में चार चांद लगाने वाला
उसको मिलती है मौत गटर के खड्डे में, और मिलती है काम के बाद खाने में गालियां
सच, दुनिया में दो हिस्सों में बंटी हुई तो है ।
लड़के रचा सकते हैं मनपंसद शख़्सियत से शादी,
यही कदम अगर लडकियां उठा ले तो निकाल दी जाती है घर के चौखट से ।
आखिर समाज की सोच में दो चेहरे तो है जो कभी पितृ सत्तात्मक समाज में कहीं नहीं दिखते ।
एक गुनाहगार भी ना हो तो मिलती है सजा,
आम नागरिक को नहीं मिलता सम्मान और
एक तरफ गुनाहगार ( नेताओं) को मिलता है मान – सम्मान और होती है आव – भगत और पहनायी जाती है मालाएं और साफा और दी जाती है सुरक्षा
सच में भारत एकजुट है मगर
सच में लोगों की सोच दो हिस्सों में बंटी हुई है ।
क्या हम नया भारत बना रहे हैं .
अविनाश बराला– लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता–
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